वफ़ा ए वादा नहीं वादा ए दिगर भी नहीं…

वफ़ा ए वादा नहीं वादा ए दिगर भी नहीं
वो मुझसे रूठे तो थे लेकिन इस क़दर भी नहीं,

बरस रही है हरीम ए हवस में दौलत ए हुस्न
गदा ए इश्क़ के कासे में एक नज़र भी नहीं,

न जाने किस लिए उम्मीदवार बैठा हूँ
एक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहीं,

निगाह ए शौक़ सर ए बज़्म बेहिजाब न हो
वो बेख़बर ही सही इतने बेख़बर भी नहीं,

ये अहद ए तर्क ए मोहब्बत है किस लिए आख़िर ?
सुकून ए क़ल्ब उधर भी नहीं इधर भी नहीं..!!

~फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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