उसे मना कर ग़ुरूर उस का बढ़ा न देना

उसे मना कर ग़ुरूर उस का बढ़ा न देना
वो सामने आए भी तो उस को सदा न देना,

ख़ुलूस को जो ख़ुशामदों में शुमार कर लें
तुम ऐसे लोगों को तोहफ़तन भी वफ़ा न देना,

वो जिस की ठोकर में हो सँभलने का दर्स शामिल
तुम ऐसे पत्थर को रास्ते से हटा न देना,

सज़ा गुनाहों की देना उस को ज़रूर लेकिन
वो आदमी है तुम उस की अज़्मत घटा न देना,

जहाँ रिफ़ाक़त हो फ़ित्ना पर्दाज़ मौलवी की
बहिश्त ऐसी किसी को मेरे ख़ुदा न देना,

‘क़तील’ मुझ को यही सिखाया मेरे नबी ने
कि फ़त्ह पा कर भी दुश्मनों को सज़ा न देना..!!

~क़तील शिफ़ाई

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