तुझे क्या बताऊँ ऐ दिलरुबा तेरे सामने मेरा हाल है…

तुझे क्या बताऊँ ऐ दिलरुबा तेरे सामने मेरा हाल है
मुझे जुस्तुजू है फ़क़त तेरी मुझे सिर्फ़ तेरा ख़याल है,

है नज़र में मेरी तो तू ही तू मेरा साँस तेरा ही गीत है
मैं भुला सकूँ तुझे दिलरुबा भला कब ये मेरी मजाल है

मेरे जिस्म में तू है हर जगह मेरे होश में तू मुक़ीम है
मैं मुतीअ हूँ तेरा ही दिलरुबा मेरे ग़म की रात हिलाल है,

मैं तो ज़िंदा तेरे ही दम से हूँ मेरी आरज़ू की तू ज़िंदगी
तेरी बेवफ़ाई की एक नज़र मेरी ज़िंदगी का सवाल है,

तेरी क़ुर्बतों की तलब मुझे तेरी दीद की मुझे जुस्तुजू
कि बग़ैर जिस के ऐ माह-रू मेरी ज़िंदगी भी मुहाल है,

सर-ए-शाम ही से न जाने क्यों है जिगर में टीस सी दर्द की
तेरे हिज्र ही में ऐ दिलरुबा यही इश्क़ का ज़र-ओ-माल है,

तेरे ग़म में ‘ग़म’ को मिला है ग़म तुझे किस तरह से सुकूँ कहूँ
तेरे ग़म में ऐसी ख़ुशी मिली जो कि ग़म की ज़िंदा मिसाल है..!!

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