राब्ता ज़िस्म का जब रूह से कट जाता है
राब्ता ज़िस्म का जब रूह से कट जाता है आदमी मुख्तलिफ़ हालात में बँट जाता …
राब्ता ज़िस्म का जब रूह से कट जाता है आदमी मुख्तलिफ़ हालात में बँट जाता …
बिखरे बिखरे सहमे सहमे रोज़ ओ शब देखेगा कौन लोग तेरे जुर्म देखेंगे सबब देखेगा …
सावन को ज़रा खुल के बरसने की दुआ दो हर फूल को गुलशन में महकने …
हर क़दम कहता है तू आया है जाने के लिए मंज़िल ए हस्ती नहीं है …
ख़राब लोगो से भी रस्म ओ राह रखते थे पुराने लोग गज़ब की निगाह रखते …
सिखाया जो सबक़ माँ ने वो हर पल निभाता हूँ मुसीबत लाख आये सब्र दिल …
लोग कैसे है यहाँ के ? ये नगर कैसा है ? उनकी जादू भरी बातों …
ज़हर के घूँट भी हँस हँस के पीये जाते है हम बहरहाल सलीक़े से जीये …
इंशा जी उठा अब कूच करो, इस शहर में जी का लगाना क्या वहशी को …
पूछो अगर तो करते है इन्कार सब के सब सच ये कि है हयात से …