नई नई आँखें हों तो हर मंज़र अच्छा लगता है
नई नई आँखें हों तो हर मंज़र अच्छा लगता है कुछ दिन शहर में घूमे …
नई नई आँखें हों तो हर मंज़र अच्छा लगता है कुछ दिन शहर में घूमे …
लाख रहे शहरों में फिर भी अन्दर से देहाती थे दिल के अच्छे लोग थे …
इस शहर में कहीं पे हमारा मकाँ भी हो बाज़ार है तो हम पे कभी …
सीनों में अगर होती कुछ प्यार की गुंजाइश हाथों में निकलती क्यूँ तलवार की गुंजाइश, …
हम से दीवानों को असरी आगही डसती रही खोखली तहज़ीब की फ़र्ज़ानगी डसती रही, शोला …
जीना मुश्किल है कि आसान ज़रा देख तो लो हर शख़्स लगता है परेशान ज़रा …
वही दर्द है वही बेबसी तेरे गाँव में मेरे शहर में बे गमो की भीड़ …
जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला मेरे स्वागत को हर एक …
सच बोलने के तौर तरीक़े नहीं रहे पत्थर बहुत हैं शहर में शीशे नहीं रहे, …
किस के नाम लिखूँ जो अलम गुज़र रहे हैं मेरे शहर जल रहे हैं मेरे …