ज़ख़्मों को रफ़ू कर लें दिल शाद करें फिर से
ज़ख़्मों को रफ़ू कर लें दिल शाद करें फिर से ख़्वाबों की कोई दुनिया आबाद …
ज़ख़्मों को रफ़ू कर लें दिल शाद करें फिर से ख़्वाबों की कोई दुनिया आबाद …
अब बेवजह बेसबब दिन को रात नहीं करता फ़ुर्सत मिले भी तो किसी से बात …
याद ए माज़ी में जो आँखों को सज़ा दी जाए उस से बेहतर है कि …
बैठे हैं चैन से कहीं जाना तो है नहीं हम बे घरों का कोई ठिकाना …
आपकी याद आती रही रात भर चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर, गाह जलती हुई …
आज ज़रा फुर्सत पाई थी आज उसे फिर याद किया बंद गली के आख़िरी घर …
उसे भुला के भी यादों के सिलसिले न गए दिल ए तबाह तेरे उससे राब्ते …
वही फिर मुझे याद आने लगे हैं जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं, वो हैं …