पहले जनाब कोई शिगूफ़ा उछाल दो
पहले जनाब कोई शिगूफ़ा उछाल दो फिर कर का बोझ गर्दन पर डाल दो, रिश्वत …
पहले जनाब कोई शिगूफ़ा उछाल दो फिर कर का बोझ गर्दन पर डाल दो, रिश्वत …
सौ में सत्तर आदमी फ़िलहाल जब नाशाद हैं दिल रखकर हाथ कहिए देश क्या आज़ाद …
ज़ुल्फ़, अँगड़ाई, तबस्सुम, चाँद, आईना, गुलाब भुखमरी के मोर्चे पर ढल गया इन सब का …
न महलों की बुलंदी से न लफ़्ज़ों के नगीने से तमद्दुन में निखार आता है …
चाँद है ज़ेर ए क़दम सूरज खिलौना हो गया हाँ, मगर इस दौर में क़िरदार …
भूख के एहसास को शेर ओ सुख़न तक ले चलो या अदब को मुफ़लिसों की …
आप कहते हैं सरापा गुलमुहर है जिंदगी हम ग़रीबों की नज़र में क़हर है जिंदगी, …
वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है उसी के दम से रौनक …
न महलों की बुलंदी से न लफ़्ज़ों के नगीने से तमद्दुन में निखार आता है …
बज़ाहिर प्यार की दुनियाँ में जो नाकाम होता है कोई रूसो कोई हिटलर कोई खय्याम …