एक उम्र गुजारी है जिसके साये में
जब से वो मुझे भुलाये जा रही है कोई बला मेरा दिल खाए जा रही है, एक उम्र
जब से वो मुझे भुलाये जा रही है कोई बला मेरा दिल खाए जा रही है, एक उम्र
चलो तुम को मिलाता हूँ मैं उस मेहमान से पहले जो मेरे जिस्म में रहता था मेरी जान
वो है बहुत हसीन और फिर उर्दू बोला करती है मेरे घर के सामने छत पर अक्सर टहला
मेरी बाहों पे तेरी ज़ुल्फ़ जो लहराई है मैं ये समझा कि बियाबाँ में बहार आई है नाम
मिलें हम कभी तो ऐसे कि हिजाब भूल जाए मैं सवाल भूल जाऊं तू जवाब भूल जाए, तू
वो जो दिल में तेरा मुक़ाम है किसी और को वो देना नहीं, वो जो रिश्ता तुझ से
लिबास तन से उतार देना, किसी को बांहों के हार देना फिर उसके जज़्बों को मार देना, अगर
मुक़म्मल दो ही दानों पर ये तस्बीह ए मुहब्बत है जो आये तीसरा दाना ये डोरी टूट जाती
कोई सुनता ही नहीं किस को सुनाने लग जाएँ दर्द अगर उठे तो क्या शोर मचाने लग जाएँ,
जानता हूँ कि तुझे साथ तो रखते है कई पूछना था कि तेरा ध्यान भी रखता है कोई