शायद समझ ही न पाए ज़माना मुहब्बत..

हकीक़त है या फ़साना मुहब्बत
पतंगे का ख़ुद को जलाना मुहब्बत

जो तारीफ़ ए फ़रहाद शिरीन से पूछे
तो बोली है वो बस दीवाना मुहब्बत

मुहब्बत का रब से जो तुमको है दावा
बताओ है क्या सूद खाना मुहब्बत ?

फ़िदा कर्बला में की शब्बीर ने जान
फ़क़त क्या है आँसू बहाना मुहब्बत ?

दिलो से है होते मुहब्बत के सौदे
किसी को नहीं आज़माना मुहब्बत

मुहब्बत है करनी तो खुल के करो ना
नहीं हमसे नज़रे चुराना मुहब्बत

क्या लौटने का जो वायदा है रब से
बशर ! इसको है भूल जाना मुहब्बत ?

है उल्फ़त एक पाक़ जज़्बे का नाम
शायद समझ ही न पाए ज़माना मुहब्बत..!!

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