साथ चलते आ रहे हैं पास आ सकते नहीं

साथ चलते आ रहे हैं पास आ सकते नहीं
एक नदी के दो किनारों को मिला सकते नहीं,

देने वाले ने दिया सब कुछ अजब अंदाज से
सामने दुनिया पड़ी है और उठा सकते नहीं,

उसकी भी मजबूरियाँ हैं, मेरी भी मजबूरियाँ हैं
रोज मिलते हैं मगर घर में बता सकते नहीं,

आदमी क्या है गुजरते वक्त की तस्वीर है
जाने वाले को सदा देकर बुला सकते नहीं,

किस ने किस का नाम ईंट पे लिखा है खून से
इश्तिहारों से ये दीवारें छुपा सकते नहीं,

उसकी यादों से महकने लगता है सारा बदन
प्यार की खुशबू को सीने में छुपा सकते नहीं,

राज जब सीने से बाहर हो गया अपना कहाँ
रेत पे बिखरे हुए आँसू उठा सकते नहीं,

शहर में रहते हुए हमको जमाना हो गया
कौन रहता है कहाँ कुछ भी बता सकते नहीं,

पत्थरों के बर्तनों में आँसू को क्या रखें ?
फूल को लफ्जों के गमलों में खिला सकते नहीं..!!

~बशीर बद्र

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