ख़त में उभर रही है तस्वीर धीरे धीरे
ख़त में उभर रही है तस्वीर धीरे धीरे गुम होती जा रही है तहरीर धीरे धीरे, एहसास तुझ
ख़त में उभर रही है तस्वीर धीरे धीरे गुम होती जा रही है तहरीर धीरे धीरे, एहसास तुझ
न जिस्म साथ हमारे न जाँ हमारी तरफ़ है कुछ भी हम में हमारा कहाँ हमारी तरफ़, खड़े
कितनी आसानी से दुनिया की गिरह खोलता है मुझ में एक बच्चा बुज़ुर्गों की तरह बोलता है, क्या
इजाज़त कम थी जीने की मगर मोहलत ज़्यादा थी हमारे पास मरने के लिए फ़ुर्सत ज़्यादा थी, तअज्जुब
ये कब चाहा कि मैं मशहूर हो जाऊँ बस अपने आप को मंज़ूर हो जाऊँ, नसीहत कर रही
घर से निकले थे हौसला कर के लौट आए ख़ुदा ख़ुदा कर के, दर्द ए दिल पाओगे वफ़ा
कुछ परिंदों को तो बस दो चार दाने चाहिएँ कुछ को लेकिन आसमानों के ख़ज़ाने चाहिएँ, दोस्तों का
किसी दिन ज़िंदगानी में करिश्मा क्यूँ नहीं होता मैं हर दिन जाग तो जाता हूँ ज़िंदा क्यूँ नहीं
जाने कितनी उड़ान बाक़ी है इस परिंदे में जान बाक़ी है, जितनी बटनी थी बट चुकी ये ज़मीं
ये जो ज़िंदगी की किताब है ये किताब भी क्या किताब है कहीं एक हसीन सा ख़्वाब है