कोई मौसम हो भले लगते थे

koi mausam ho bhale lagte the

कोई मौसम हो भले लगते थे दिन कहाँ इतने कड़े लगते थे ? ख़ुश तो पहले भी नहीं

दिन में परियाँ क्यूँ आती हैं ?

din me pariyan kyun aati hai

दिन में परियाँ क्यूँ आती हैं ऐसी घड़ियाँ क्यूँ आती हैं ? अपना घर आने से पहले इतनी

सफ़र में सोचते रहते हैं छाँव आए कहीं

safar me sochte rahte hai chhanv aaye kahin

सफ़र में सोचते रहते हैं छाँव आए कहीं ये धूप सारा समुंदर ही पी न जाए कहीं, मैं

कुछ तो इस दिल को सज़ा दी जाए

kuch to is dil ko saza dee jaaye

कुछ तो इस दिल को सज़ा दी जाए उस की तस्वीर हटा दी जाए, ढूँढने में भी मज़ा

सर्दी में दिन सर्द मिला

sardi me din sard mila

सर्दी में दिन सर्द मिला हर मौसम बेदर्द मिला, ऊँचे लम्बे पेड़ों का पत्ता पत्ता ज़र्द मिला, सोचते

मुँह ज़बानी क़ुरआन पढ़ते थे

munh zabani quraan padhte the

मुँह ज़बानी क़ुरआन पढ़ते थे पहले बच्चे भी कितने बूढ़े थे, एक परिंदा सुना रहा था ग़ज़ल चार

दिन एक के बाद एक गुज़रते हुए भी देख

din ek ke baad ek guzarte hue bhi dekh

दिन एक के बाद एक गुज़रते हुए भी देख एक दिन तू अपने आप को मरते हुए भी

और बाज़ार से क्या ले जाऊँ ?

aur baazar se kya le jaaoon

और बाज़ार से क्या ले जाऊँ पहली बारिश का मज़ा ले जाऊँ कुछ तो सौग़ात दूँ घर वालों

धूप ने गुज़ारिश की

dhoop ne guzarish ki ek boond barish ki

धूप ने गुज़ारिश की एक बूँद बारिश की, लो गले पड़े काँटे क्यूँ गुलों की ख़्वाहिश की ?

लबों पर यूँही सी हँसी भेज दे

labon par yunhi see hansi bhej de

लबों पर यूँही सी हँसी भेज दे मुझे मेरी पहली ख़ुशी भेज दे, अँधेरा है कैसे तेरा ख़त