सुखाने बाल ही कोठे पे आ गए होते
सुखाने बाल ही कोठे पे आ गए होते इसी बहाने ज़रा मुँह दिखा गए होते, तुम्हें भी वक़्त
सुखाने बाल ही कोठे पे आ गए होते इसी बहाने ज़रा मुँह दिखा गए होते, तुम्हें भी वक़्त
सच है कि वो बुरा था हर एक से लड़ा किया लेकिन उसे ज़लील किया ये बुरा किया,
ऐसा हुआ नहीं है पर ऐसा न हो कहीं उस ने मुझे न देख के देखा न हो
रात पड़े घर जाना है सुब्ह तलक मर जाना है, जाग के पछताना है बहुत सोते में डर
क्या कहते क्या जी में था शोर बहुत बस्ती में था, पहली बूँद गिरी टप से फिर सब
तीसरी आँख खुलेगी तो दिखाई देगा और कै दिन मेरा हमज़ाद जुदाई देगा ? वो न आएगा मगर
अचानक तेरी याद का सिलसिला अँधेरे की दीवार बन के गिरा, अभी कोई साया निकल आएगा ज़रा जिस्म
रात के मुँह पर उजाला चाहिए चोर के घर में भी ताला चाहिए, ग़म बहुत दिन मुफ़्त की
सोचते रहते हैं अक्सर रात में डूब क्यूँ जाते हैं मंज़र रात में ? किस ने लहराई हैं
धूप में सब रंग गहरे हो गए तितलियों के पर सुनहरे हो गए, सामने दीवार पर कुछ दाग़