तुम आईना ही न हर बार देखते जाओ
तुम आईना ही न हर बार देखते जाओ मेरी तरफ़ भी तो सरकार देखते जाओ, न जाओ हाल
तुम आईना ही न हर बार देखते जाओ मेरी तरफ़ भी तो सरकार देखते जाओ, न जाओ हाल
तुम्हारे ख़त में नया एक सलाम किस का था न था रक़ीब तो आख़िर वो नाम किस का
एक वो दौर कि मिन्नतें करता था वफ़ा निभाने की एक ये वक़्त कि उसे आरज़ू है दामन
खिड़कियों से झाँक कर गलियों में डर देखा किए घर में बैठे रात दिन दीवार ओ दर देखा
इरादा है किसी जंगल में जा रहूँगा मैं तुम्हारा नाम हर एक पेड़ पर लिखूँगा मैं, हर एक
शगुन ले कर न क्यूँ घर से चला मैं तुम्हारे शहर में तन्हा फिरा मैं, अकेला था किसे
वो मेरे साथ आने पे तैयार हो गया सोते से हड़बड़ा के मैं बेदार हो गया, उस के
गिरह में रिश्वत का माल रखिए ज़रूरतों को बहाल रखिए, बिछाए रखिए अँधेरा हर सू सितारा कोई उछाल
थोड़ी सर्दी ज़रा सा नज़ला है शायरी का मिज़ाज पतला है, सुनने वालों का कुछ क़ुसूर नहीं नया
दुख का एहसास न मारा जाए आज जी खोल के हारा जाए, इन मकानों में कोई भूत भी