साथ मुझको ही पाओगे जिधर जाओगे…

साथ मुझको ही पाओगे जिधर जाओगे
इससे ज्यादा तुम्हे चाहा तो बिगड़ जाओगे,

दिल ए नादान ने किया फिर से भरोसा क्यों कर
मैंने सोचा था कि इस बार सुधर जाओगे,

हमको मालूम नहीं तर्क ए ताअल्लुक़ का सबब
इतना मालूम है बिछड़ोगे तो मर जाओगे,

मैंने सीखा ही नहीं फिर से बसाना दिल में
दिल से निकले तो मेरी जान किधर जाओगे ?

शायद तुम्हे इल्म ही नहीं, दुनियाँ क्या है ?
इससे उम्मीद लगाओगे तो बिखर जाओगे..!!

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