मुहब्बत जो हकीकी हो तो क़िस्मत ही सँवर जाती
मुहब्बत जो मिजाज़ी हो तो उलझन औद कर आती,
सुना है लैला मजनू का तो क़िस्सा जो मिजाज़ी था
वो क़िस्सा गर हकीकी होता तो शोहरत न हो पाती,
मुहब्बत गर मिजाज़ी हो तो दीवानगी ही दीवानगी
मुहब्बत गर हकीकी हो तो दीवानगी नहीं लाती,
हमारी ज़िन्दगी तो बस मुहब्बत ही मुहब्बत है
हकीकी या मिजाज़ी हो ये अपना रंग दिखलाती,
किसी की आरज़ू में अपनी चाहत भी मिटा देना
यही नवाब की हसरत यही उल्फ़त भी सिखलाती..!!