मेरे दिन की तरह रौशन मेरी हर…

मेरे दिन की तरह रौशन मेरी हर रात होती है
दुआ माँ की हर एक मौसम में मेरे साथ होती है,

अजब दस्तूर है ये भी इज़हार ए मोहब्बत का
ज़बाँ ख़ामोश रहती है नज़र से बात होती है,

तलाश ए रिज़्क़ में जब भी कभी घर से निकलता हूँ
मेरे हमराह पैहम गर्दिश ए हालात होती है,

भला इल्ज़ाम कोई दुश्मनी पर क्या रखा जाए ?
कि अब तो दोस्ती ही बाइस ए सदमात होती है,

रहूँ मैं कोई आलम कोई हालत में मगर ‘साहिल’
मेरे पेश ए नज़र तो बस ख़ुदा की ज़ात होती है..!!

~अब्दुल हफ़ीज़ साहिल क़ादरी

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