खिड़कियाँ खोल रहा था कि हवा आएगी…

खिड़कियाँ खोल रहा था कि हवा आएगी
क्या ख़बर थी कि चिरागों को निगल जाएगी,

मुझेको इस वास्ते बारिश नहीं अच्छी लगती
जब भी वो आएगी, कोई याद उठा लाएगी,

उसने हँसते हुए कर ली है अलाहिदा राहें
मैं समझता था कि बिछ्ड़ेगी तो मर जाएगी,

मैं मुसाफ़िर हूँ, मैं तो बहर तौर चला जाऊँगा
मगर तू मेरे बाद भला कैसे संभल पाएगी ?

मेरी आवाज़ को तरसेगी समाअत तेरी
उम्र भर फिर तुझको मेरी कॉल नहीं आएगी..!!

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