जिस शेर का उन्वान मुहब्बत थी, वो तुम थे…

जिस शेर का उन्वान मुहब्बत थी, वो तुम थे
जिस दर्द का दरमान मुहब्बत थी, वो तुम थे,

रंगीन सी गलियाँ वो नज़ारे, वो फज़ाएँ
जिस देश की पहचान मुहब्बत थी, वो तुम थे,

हर ख़्वाब चमन ज़ार था, हर सोच थी गुलरंग
कलियों पे जो मुस्कान, मुहब्बत थी, वो तुम थे,

सपनो का सजाया हुआ एक ताज़ महल था
दिल में जो थे अरमान, मुहब्बत थी, वो तुम थे,

दिल के ग़रीब खाने पे दस्तक दिए बगैर
आया था जो मेहमान, मुहब्बत थी, वो तुम थे,

एक पल नहीं, ना दिन ओ रात, न माह ओ साल
सदियों से जो पहचान, मुहब्बत थी, वो तुम थे..!!

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