जब लहज़े बदल जाएँ तो वज़ाहते कैसी…

जब लहज़े बदल जाएँ तो वज़ाहते कैसी
नयी मयस्सर हो जाएँ तो पुरानी चाहतें कैसी ?

वस्ल में गुज़रे लम्हे है अनमोल यादें
हिज़्र में सुख, खुशियाँ, रहतें कैसी ?

लोग बदल जाते है दिल भर जाने पे भी
ला हासिल तलाश, चेहरों में शबाहतें कैसी ?

हर फ़र्द ही बना है ख़ुद साख्ता पारसा यहाँ
दुनियाँ दिखावे के लिए हों तो इबादतें कैसी ?

Leave a Reply

error: Content is protected !!