जाने किस करनी का फल होगा…

जाने किस करनी का फल होगा
कैसी फिजा, कैसे मौसम में जागे हम ?

शहरों से सेहराओ तक टहनी टहनी
हर सिम्त झूल रही लाशें ज़िन्दा पत्तो की,

क्या इसी दिन और नज़्ज़ारे की खातिर
चैन ओ सुकूं छोड़ जंगल जंगल भागे हम ?

कैसे जलती तपती इस दोपहरी में
कोई प्यासा पंछी नहर किनारे उतरेगा ?

तेज़ नुकीले खंज़र और तलवारों के
दरमियाँ हो जैसे कोई फँसे हुए धागे हम

जब अपनी ही यहाँ कोई पहचान नहीं
तो हमसाए को कैसे अब पहचाने हम ?

चप्पे चप्पे पर तो चुनवा दी है दीवारे
कैसे देखे और क्या देखे इनके आगे हम ??

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