हिज़रतो का ज़माना भी क्या ज़माना है…

हिज़रतो का ज़माना भी क्या ज़माना है
उन्ही से दूर है जिनके लिए कमाना है,

ख़ुशी ये है कि मेरे घर से फोन आया है
सितम ये है कि मुझे खैरियत बताना है,

हमें ये बात बहुत देर में समझ आई
वही तो जाल बिछा है जहाँ भी दाना है,

हमें जला नहीं सकती है धूप हिज़रत की
हमारे सर पे ज़रूरत का शामियाना है,

नमाज़ ईद की पढ़ कर मैं ढूँढता ही रहा
कहीं दिखे कोई अपना गले लगाना है,

वहीँ वहीँ लिए फिरती है गर्दिश ए दौराँ
जहाँ जहाँ भी लिखा मेरा आब ओ दाना है..!!

~सय्यद सरोश आसिफ़

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