एहसास ए इश्क़ दिल की पनाहों में आ गया
बादल सिमट के चाँद की बाहोँ में आ गया,
इज़हार ए इश्क़ मैं ने किसी से नहीं किया
और बेसबब जहाँ की निगाहों में आ गया,
वो मुस्कुरा के देख रहे हैं मेरी तरफ़
इतना असर तो अब मेरी आहों में आ गया,
क्या पूछते हो अज़्म ए सफ़र की करामातें
मंज़िल का नक़्श ख़ुद मेरी राहों में आ गया,
हैं इब्तिदाई मरहले ये इश्क़ के अभी
‘साहिल’ ये सोज़ क्यूँ तेरी आहों में आ गया..!!
~अब्दुल हफ़ीज़ साहिल क़ादरी