चराग़ ए तूर जलाओ बड़ा अँधेरा है…

चराग़ ए तूर जलाओ बड़ा अँधेरा है
ज़रा नक़ाब उठाओ बड़ा अँधेरा है,

अभी तो सुब्ह के माथे का रंग काला है
अभी फ़रेब न खाओ बड़ा अँधेरा है,

वो जिन के होते हैं ख़ुर्शीद आस्तीनों में
उन्हें कहीं से बुलाओ बड़ा अँधेरा है,

मुझे तुम्हारी निगाहों पे ऐतमाद नहीं
मेरे क़रीब न आओ बड़ा अँधेरा है,

फ़राज़ ए अर्श से टूटा हुआ कोई तारा
कहीं से ढूँढ के लाओ बड़ा अँधेरा है,

बसीरतों पे उजालों का ख़ौफ़ तारी है
मुझे यक़ीन दिलाओ बड़ा अँधेरा है,

जिसे ज़बान ए ख़िरद में शराब कहते हैं
वो रौशनी सी पिलाओ बड़ा अँधेरा है,

बनाम ए ज़ोहरा जबीनान ए ख़ित्ता ए फ़िर्दौस
किसी किरन को जगाओ बड़ा अँधेरा है..!!

~साग़र सिद्दीक़ी

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