सरहदों पर है अपने जवानों का गम
सरहदों पर है अपने जवानों का गम और बस्ती में जलते मकानों का गम, फिर से ये गंदी …
सरहदों पर है अपने जवानों का गम और बस्ती में जलते मकानों का गम, फिर से ये गंदी …
आदम की जात होकर इल्म बिसरा रहे हो क्यूँ मज़लूम ओ गरीब को बेवजह सता रहे हो ? …
आरज़ी ताक़तें तुम्हारी है पर ख़ुदा हमारा है अपने अक्स पर न इतराओ आईना हमारा है, तेरी रज़ा …
वही है वहशत वही है नफ़रत आख़िर इस का क्या है सबब ? इंसाँ इंसाँ बहुत रटा है …
जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला मेरे स्वागत को हर एक जेब से खंजर …
एक ही धरती हम सब का घर जितना तेरा उतना मेरा दुख सुख का ये जंतर मंतर जितना …
वो शख़्स कि मैं जिस से मोहब्बत नहीं करता हँसता है मुझे देख के नफ़रत नहीं करता, पकड़ा …
क्यूँ ज़मीं है आज प्यासी इस तरह ? हो रही नदियाँ सियासी इस तरह, जान की परवाह किसे …
किस के नाम लिखूँ जो अलम गुज़र रहे हैं मेरे शहर जल रहे हैं मेरे लोग मर रहे …
वतन को कुछ नहीं ख़तरा निज़ाम ए ज़र है ख़तरे में हक़ीक़त में जो रहज़न है वही रहबर …