फ़लक पे चाँद के हाले भी सोग करते हैं…

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फ़लक पे चाँद के हाले भी सोग करते हैं जो तू नहीं तो उजाले भी सोग करते हैं,

खून अपना हो या पराया हो….

खून अपना हो या

खून अपना हो या पराया हो नस्ल ए आदम का खून है आखिर,   जंग मशरिक़ में हो

एक अरसे से जमीं से लापता है इन्किलाब…

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एक अरसे से जमीं से लापता है इन्किलाब कोई बतलाये कहाँ गायब हुआ है इन्किलाब, एक वो भी

गुलों में रंग न खुशबू, गरूर फिर भी है…

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गुलों में रंग न खुशबू, गरूर फिर भी है नशे में रूप के वो चूर-चूर फिर भी है,

तुम जैसे तो लाखो ही थे, है और भी आएँगे…

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तुम जैसे तो लाखो ही थे, है और भी आएँगे मगर हम जैसे तुम्हे बहुत कम ही मिल

मैंने पल भर में यहाँ लोगो को बदलते हुए देखा है…

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मैंने पल भर में यहाँ लोगो को बदलते हुए देखा है ज़िन्दगी से हारे हुए लोगो को जीतते

जिधर देखते है हर तरफ गमो के अम्बार देखते है…

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जिधर देखते है हर तरफ गमो के अम्बार देखते है हर किसी को रंज़ ओ अलम में गिरफ्तार

बशर तरसते है उम्दा खानों को…

बशर तरसते है उम्दा

बशर तरसते है उम्दा खानों को मौत पड़ती है हुक्मरानो को, ज़ुर्म आज़ाद फिर रहा है यहाँ बेकसों

सब गुनाह ओ हराम चलने दो….

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सब गुनाह ओ हराम चलने दो कह रहे है निज़ाम चलने दो, ज़िद्द है क्या वक़्त को बदलने

ज़हालत की तारीकियो में गुम अहल ए वतन को…

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ज़हालत की तारीकियो में गुम अहल ए वतन को वो ले कर तालीम की मशाल रास्ता दिखाने चला