राज़ कहाँ तक राज़ रहेगा मंज़र-ए-आम पे आएगा
राज़ कहाँ तक राज़ रहेगा मंज़र-ए-आम पे आएगाजी का दाग़ उजागर हो कर सूरज को शरमाएगा, शहरों को
General Poetry
राज़ कहाँ तक राज़ रहेगा मंज़र-ए-आम पे आएगाजी का दाग़ उजागर हो कर सूरज को शरमाएगा, शहरों को
पीत करना तो हम से निभाना सजनहम ने पहले ही दिन था कहा ना सजन, तुम ही मजबूर
लोग हिलाल-ए-शाम से बढ़ कर पल में माह-ए-तमाम हुएहम हर बुर्ज में घटते घटते सुब्ह तलक गुमनाम हुए,
कुछ कहने का वक़्त नहीं ये कुछ न कहो ख़ामोश रहोऐ लोगो ख़ामोश रहो हाँ ऐ लोगो ख़ामोश
किस को पार उतारा तुम ने किस को पार उतारोगेमल्लाहो तुम परदेसी को बीच भँवर में मारोगे, मुँह
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तेराकुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा
सब झाड़ फूँक सीख गए शेख जी से हममुर्गे को ज़िबह करते है उल्टी छुरी से हम, बचपन
ये मेरी ग़ज़लें ये मेरी नज़्में तमाम तेरी हिकायतें हैंये तज़किरे तेरी लुत्फ़ के हैं ये शेर तेरी
इब्तिदा ए इश्क़ में मेरायूँ हुआ दिल ख़राब आधा, कि जैसे सिख पर चढ़ते हीजल गया हो कबाब
लानत है तेरी ज़िन्दगी पे नहीं तू किसी काज काशक्ल ए इंसानी में छुपा तू इब्लीस के मिजाज़