रुख से नक़ाब उनके जो हटती चली गई…

रुख से नक़ाब उनके

रुख से नक़ाब उनके जो हटती चली गईचादर सी एक नूर की बिछती चली गई, आये वो मेरे

हर नाला तिरे दर्द से अब और ही कुछ है….

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हर नाला तिरे दर्द से अब और ही कुछ हैहर नग़्मा सर-ए-बज़्म-ए-तरब और ही कुछ है, अरबाब-ए-वफ़ा जान

जिन्हें कर सका न क़ुबूल मैं…

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जिन्हें कर सका न क़ुबूल मैंवो शरीक़ राह ए सफ़र हुए, जो मेरी तलब मेरी आस थेवही लोग

अभी क्या कहे अभी क्या सुने ?

abhi-kya-kahe-abhi-kya

अभी क्या कहे अभी क्या सुने? कि सर ए फसील ए सकूत ए जाँकफ़ ए रोज़ ओ शब

कभी ऐसा भी होता है ?

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कभी ऐसा भी होता है ?कि जिसको हमसफ़र जानेकि जो शरीक़ ए दर्द होवही हमसे बिछड़ जाए, कभी

दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के…

wo ja raha hai koi shab e gam guzar ke

दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार केवो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के, वीराँ है मय-कदा ख़ुम-ओ-साग़र

नख्ल ए ममनूअ के रुख दोबारा गया

नख्ल ए ममनूअ के

नख्ल ए ममनूअ के रुख दोबारा गया, मैं तो मारा गयाअर्श से फ़र्श पर क्यूँ उतारा गया ?

उस ने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दिया..

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उस ने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दियाहिज्र की रात बाम पर माह-ए-तमाम रख दिया, आमद-ए-दोस्त की

उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ…

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उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआअब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ, ढलती न थी

मैं तुझको भूल के ज़िंदा रहूँ ख़ुदा न करे…

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वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करेमैं तुझको भूल के ज़िंदा रहूँ ख़ुदा न