भीतर भीतर आग भरी है बाहर बाहर पानी है

भीतर भीतर आग भरी है बाहर बाहर पानी है
तेरी मेरी, मेरी तेरी सब की यही कहानी है,

ये हलचल, ये खेल तमाशे सब रोटी की माया है
पेट भरा है तो फिर प्यारे ऋतु हर एक सुहानी है,

इल्म का कोई मान नहीं दौलत का बस सम्मान यहाँ
गर दौलत है पास तुम्हारे तो मैली चादर धानी है,

ये हिन्दू है, वो मुस्लिम है, ये सिख वो ईसाई है
सब के सब है ये वो पर कोई न यहाँ हिन्दुस्तानी है,

जिसके कारण गले कटे और लोगो के ईमान बिके
इस छोटी सी कुर्सी की तो अदभुत बड़ी कहानी है,

हंस जहाँ पर भूखो मरते, बगुले करते राज जहाँ
वो ही देश है भारत जिसका जग में कोई न सानी है,

सौ सौ बार यहाँ जन्मा मैं सौ सौ बार मरा हूँ मैं
रंग नया है, रूप नया है सूरत मगर पुरानी है..!!

~गोपालदास नीरज

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