ऐ निगाह ए दोस्त ये क्या हो गया क्या कर दिया
पहले पहले रौशनी दी फिर अँधेरा कर दिया,
आदमी को दर्द ए दिल की कद्र करनी चाहिए
ज़िन्दगी की तल्खियों में लुत्फ़ पैदा कर दिया,
इस निगाह ए शौक़ की तीर अफ़गनी रखी रही
मैंने पहले इसको मज़रूह ए तमाशा कर दिया,
उनकी महफ़िल के तसव्वुर ने फिर उनकी याद ने
मेरे गम खाना की रौनक को दोबाला कर दिया,
मयकदे की शाम और काँपते हाथों में ज़ाम
तिश्नगी की खैर हो ये किस को रुसवा कर दिया..!!