किसी की आँखों में ऐसा कभी ख़ुमार न था

कोई भी शख्स मगर मेरा गमगुसार न था

किसी की आँखों में ऐसा कभी ख़ुमार न था
कि जिसका सारे जहाँ में कोई उतार न था,

न आये गर तेरी गिनती में हम तो क्या शिकवा ?
हमारा घर के भी लोगो में कुछ शुमार न था,

हज़ारों लोग थे कहने को मेरे अपने ऐ दोस्त !
कोई भी शख्स मगर मेरा गम गुसार न था,

चले जो साथ मेरे उनका शुक्रिया लेकिन
सलाम उनपे जिन्हें मुझ पे ऐतबार न था,

मिला है साथ तेरा जिसको मैं तो हैरान हूँ
तुम्हारे चाहने वालो में भी वो शुमार न था,

किसी को कैसे भला रोकते हम मुहब्बत से
हमें जब अपने ही दिल पर कुछ इख़्तियार न था..!!

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